Renuka Mata Temple: दिन में तीन रूप बदलने वाली मां रेणुका के धाम पर लगा रहता है भक्तों का तांता, भक्तों के कष्ट करती हैं दूर!
Renuka Mata Temple: बैतूल। जिले के आमला ब्लॉक के छावल में स्थित है प्रसिद्ध मां रेणुका माता का धाम। नवरात्र में मां रेणुका के मंदिर में माता रानी की कृपा व संकटों से मुक्ति पाने के लिए भक्तजनों का तांता लगा रहता है। वैसे तो माता की महिमा और इस धाम को लेकर कई चमत्कार बताए जाते हैं। साथ ही समय-समय पर यह चमत्कार होते नजर भी आते हैं। लेकिन, इस धाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मां रेणुका हर दिन तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं। आमला से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम छावल में रेणुका धाम आस्था का केन्द्र माना जाता है।
कई बार देखे चमत्कार
नवरात्र में बड़ी संख्या में भक्त यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर का इतिहास 550 साल पुराना है। छोटी सी पहाड़ी पर बने मंदिर में मां रेणुका की स्वप्रकट प्रतिमा है। मान्यता है कि हर पहर में मां अपने तीन स्वरूप में दर्शन देती हैं। भोर होते ही नन्हीं बालिका का स्वरूप, तो दोपहर में युवती स्वरूप में मां के चेहरे का तेज बढ़ जाता है और शाम को मां रेणुका ममतामयी, सौम्य, करुणा भरे रूप में दिखाई देती हैं।
बीते कई सालों से मैया की सेवा कर रहे मंदिर के पुजारी गणेश पुरी गोस्वामी मां के इस चमत्कार को हर पहर महसूस करते हैं। वे बताते हैं कि नवरात्र में शक्ति की देवी मां के तीन अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। उनके मुताबिक मंदिर में 60 साल से अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित है। ग्रामीण सहित बाहर से आने वाले श्रद्धालु मां रेणुका की कृपा के साक्षी हैं।
नवरात्र में दूर- दूर से श्रद्धालु माता के दरबार के पास अखण्ड ज्योति जलाने आते हैं। पुजारी के मुताबिक यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है। मां के दरबार में वर्षों से जल रही अखंड ज्योति का तेल शरीर पर लगाने से कैंसर के मरीज तक ठीक हो जाते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से माता रानी के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है।
इन स्थानों पर भी मां के मंदिर
मां रेणुका के मंदिर में वैसे तो साल भर ही भक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन शारदीय नवरात्र में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। यहां नवरात्र में बड़ा मेला भी आयोजित होता है। मन्नत पूरी होने पर यहां नीम गाड़ा खींचने की परंपरा भी है। छावल गांव के अलावा मां रेणुका महाराष्ट्र के माहूरगढ़, भैंसदेही के धामनगांव, बिसनूर और मासोद गांव में भी है। मान्यता है कि सभी जगह मां रेणुका की प्रतिमा का प्राकट्य हुआ है।
पर्यटन विभाग द्वारा रेणुका धाम छावल में लगभग 5 वर्ष पूर्व 42 लाख रुपए की लागत से श्रृद्धालुओं के लिए बैठक व्यवस्था हेतु चबूतरा एवं टीन शेड, रेलिंग सहित अन्य निर्माण कार्य करवाए गए थे। वर्तमान में यहां व्यवस्थित दुकान नहीं लग पाती हैं। इसलिए कॉम्प्लेक्स एवं टीन शेड सहित पेयजल की उचित व्यवस्था की कमी श्रद्धालुओं को खल रही है।
पिता की आज्ञा से मां का सिर काट दिया था
भगवान परशुराम की माता रेणुका राजा प्रसेनजित की पुत्री थीं। रेणुका, महर्षि जमदग्ननि की पत्नी थीं। रेणुका के पांच बेटे थे जिनका नाम रुक्मवान, सुखेन, वसु, विश्वासु और परशुराम थे। रेणुका एक चन्द्रवंशी क्षत्रिय कन्या थीं। रेणुका के पिता ने एक यज्ञ किया था जिससे उन्हें रेणुका की प्राप्ति हुई थी। रेणुका के पति महर्षि जमदग्नि के पास एक कामधेनू गाय थी, जिसे पाने के लिए कई राजा ऋषि लालायित थे।
एक दिन राजा जमदग्नि ने अपने पांचवे पुत्र परशुराम को बुलाया, जो शिव का ध्यान कर रहे थे और उन्हें रेणुका का सिर काटने का आदेश दिया। परशुराम ने तुरन्त अपने पिता कि बात मान ली और अपनी कुल्हाडी से आपनी मां का सिर काट दिया। जमदग्नि परशुराम की भक्ति और उनके प्रति आज्ञाकारिता से प्रसन्न हुए वह अपनी मां को भी मार देते है क्योंकि उसके पिता उसकी आज्ञा का परीक्षण करने के लिए ऐसा कहते हैं।
परशुराम जी द्वारा अपनी मां को मारने के अपने पिता के आदेश का पालन करने के बाद उसके पिता उसे वरदान देते हैं। परशुराम ने इनाम के तौर पर अपनी मां को वापस जीवित करने के लिए कहा और वह फिर से जीवित हो गई। वीर योद्धा ऋषि परशुराम के जन्म स्थान के रूप में सम्मानित यह मंदिर माता रेणुका को समर्पित है। रेणुका माता के लिए कुछ मंत्र ओम श्री रेणुका देव्यै नमः है। भक्त इस मंत्र का जाप करते हैं।
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