Lohri 2025: आज है लोहड़ी, जानिए इसे जलाने का शुभ मुहूर्त और कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा?

लोहड़ी के दौरान, लकड़ी और गाय के गोबर के उपलों का उपयोग करके अलाव जलाया जाता है। यह खुले स्थानों या घरों के बाहर किए जाने वाले एक पवित्र अनुष्ठान का प्रतीक है।
lohri 2025  आज है लोहड़ी  जानिए इसे जलाने का शुभ मुहूर्त और कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा

Lohri 2025: लोहड़ी का पर्व आज 13 जनवरी को पूरे देश में मनाया जा रहा है। यह ऋतु परिवर्तन औऱ रबी की फसल कटने का पर्व है। लोहड़ी हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी (Lohri 2025) के एक दिन बाद ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। लोहरी एक यह फसल उत्सव है जो शीतकालीन संक्रांति के समापन का प्रतीक है। आज के दिन लोग एक पवित्र अलाव के चारों ओर घूमते हैं। यह अलाव प्रजनन क्षमता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है, खासकर नवविवाहितों और नवजात शिशुओं वाले परिवारों के लिए।

कब है लोहड़ी जलाने का शुभ समय

सूर्य का मकर राशि में संक्रमण 14 जनवरी, 2025 को सुबह 8:44 बजे शुरू होगा। इससे पहले 13 जनवरी को हम लोहड़ी (Lohri 2025) मनाएंगे। वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल लोहड़ी के दिन भाद्रवास और रवियोग बन रहा है। शाम 4 बजकर 26 मिनट तक भद्रावास योग रहेगा। माना जाता है कि इस योग के दौरान अग्निदेव की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इतना ही नहीं इस दिन आद्रा और पुनर्वसु नक्षत्र का भी योग बन रहा है। लोहड़ी की पूजा शाम यानी प्रदोष काल में ही की जाती है।

आज के दिन सूर्यास्त शाम 5 बजकर 45 मिनट पर होगा। सूर्यास्त के बाद दो घंटे तक का समय लोहड़ी पूजन और अलाव जलाने के लिए शुभ होगा। इसका अर्थ है कि लोहड़ी (Lohri 2025 Shubh Muhurat) जलाने का शुभ समय शाम 5 बजकर 45 मिनट से रात 7 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। विद्वानों के अनुसार, लोहड़ी जलाकर उसकी कम से कम सात बार और अधिक से अधिक 11 बार परिक्रमा करनी चाहिए।

लोहड़ी 2025 पूजा सामग्री और अनुष्ठान

लोहड़ी (Lohri 2025 Rituals) के दौरान, लकड़ी और गाय के गोबर के उपलों का उपयोग करके अलाव जलाया जाता है। यह खुले स्थानों या घरों के बाहर किए जाने वाले एक पवित्र अनुष्ठान का प्रतीक है। तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली जैसे प्रसाद आग में चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद परिवार के लोग जलाई हुई लोहड़ी की परिक्रमा करते हैं।

लोहड़ी कृषि की समृद्धि का सम्मान करती है, जिसमें अग्नि देवता और सूर्य देवता से आने वाले मौसम में अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। परिवार अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर तिल, गुड़ और पॉपकॉर्न चढ़ाते हैं और ढोल की ताल पर नृत्य करते हैं।

लोहड़ी का इतिहास और महत्व

लोहड़ी की उत्पत्ति लोककथाओं और पारिवारिक परंपराओं में गहराई से निहित है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। परंपरागत रूप से, लोहड़ी (Lohri History and Significance) एक फसल उत्सव रहा है, विशेष रूप से उन परिवारों के लिए महत्वपूर्ण है जिनकी आजीविका खेती और कृषि पर निर्भर थी।

समय के साथ, यह अग्नि पूजा का उत्सव भी बन गया है, जो गर्मी और प्रकाश का प्रतीक है। लोहड़ी के बाद कड़ाके की सर्दी कम होने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं। लोग पवित्र अलाव के लिए विशेष भोजन और प्रसाद तैयार करते हैं। लोगों का मानना ​​है कि ये अनुष्ठान समृद्धि लाते हैं और बुराई को दूर करते हैं, जिससे आने वाले वर्ष में अच्छी फसल होने की उम्मीद भी बढ़ती है।

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