Guna Local News: कालादेव में दशहरा का जीवंत मंचन से लोगों में खुशी की लहर, नाटकीय रूप ने लोगों का मन मोहा!
Guna Local News: गुना। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की लटेरी तहसील का ग्राम कालादेव जो की गुना जिले की सीमा से लगा हुआ है। यह गांव अपनी अनूठी दशहरा परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल दशहरे के मौके पर रावण को जलाने के बजाय उसकी पूजा की जाती है, जो इस गांव की विशिष्टता को दर्शाता है। यहां दशहरा एक अद्भुत आयोजन बन जाता है, जिसमें रावण की विशाल प्रतिमा के सामने राम और रावण के दलों के बीच एक नाटकीय युद्ध होता है।
नाटकीय रूप में दशहरा
कालादेव गांव में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसके सामने एक ध्वज गाड़ा जाता है। यह ध्वज राम और रावण के बीच युद्ध का प्रतीक है। इस अवसर पर कालादेव के लोग राम दल के रूप में ध्वज को छूने का प्रयास करते हैं, जबकि रावण दल के लोग उन पर गोफन से पत्थरों की बौछार करते हैं। हालांकि, यह चमत्कारिक होता है कि गोफन से फेंके गए पत्थर राम दल के लोगों को नहीं लगते, बल्कि वे मैदान से अपनी दिशा बदलकर निकल जाते हैं।
आदिवासी और बंजारा समुदाय के बीच खेल
यहां की मान्यता है कि कालादेव गांव के निवासी इस आयोजन में सुरक्षित रहते हैं। यदि कोई बाहरी व्यक्ति राम दल में शामिल होता है, तो उसे गोफन से फेंके गए पत्थर लग जाते हैं। यह अद्भुत घटना सदियों से चली आ रही है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। इस परंपरा में रावण की सेना का प्रतिनिधित्व आसपास के आदिवासी और बंजारा समाज के लोग करते हैं। इस आयोजन में देखने योग्य बात यह है कि यहां के कुशल निशानेबाज भी असहाय नजर आते हैं। उड़ती हुई चिड़िया को गोफन से मार गिराने वाले विद्वेषी भील और बंजारा समाज के लोग रावण की सेना बनकर इस अनूठे युद्ध में भाग लेते हैं। जैसे ही रावण दल पत्थर फेंकता है, वे राम दल के सामने जाकर अपनी दिशा बदल देते हैं।
रामलीला का मंचन
इस अनूठे आयोजन की शुरुआत रामलीला के मंचन से होती है। आदिवासी कलाकार राम और रावण के बीच की लीला को प्रस्तुत करते हैं, जो दर्शकों के लिए एक अद्भुत अनुभव होता है। इस दौरान, हजारों लोग इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं और राम की जयकार करते हैं। जब राम दल विजयी होता है, तो गांव के लोग एक-दूसरे को दशहरा की बधाई देते हैं। यह एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जहां रावण की पूजा के साथ-साथ विजय का जश्न भी मनाया जाता है।
यहां दशहरा मनाने की परंपरा अन्य स्थानों से अलग है, जहां आमतौर पर रावण का दहन किया जाता है। भोपाल से लगभग 150 किमी की दूरी पर स्थित कालादेव तक पहुंचने के लिए बैरसिया, महानीम चौराहा, लटेरी और आनंदपुर होते हुए यात्रा की जा सकती है। इस आयोजन को देखने के लिए आसपास के कई जिलों से लोग यहां आते हैं, जिससे यह एक सामुदायिक उत्सव का रूप ले लेता है।
यहां सुरक्षा को लेकर भी पुलिस की पूरी तैयारी रहती है। कालादेव गांव का यह अनूठा दशहरा केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह गांव की सांस्कृतिक धरोहर और एकता का प्रतीक है, जो वर्षों से जीवित है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
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