आजादी के आंदोलन की याद दिलाती हैं ग्वालियर की गलियां, अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए गोपनीय केंद्र में बनती थी रणनीति
Gwalior Freedom fighter ग्वालियर: हर साल 15 अगस्त को देश की आजादी का पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। इस आजादी के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। मध्य प्रदेश के ग्वालियर से भी स्वतंत्रता सेनानियों का खास नाता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नायक चंद्रशेखर आजाद का नाम लेते ही एक हाथ में पिस्टल और दूसरे से मूछों को घुमाने वाली तस्वीर याद आती है। चंद्रशेखर आजाद का नाम चंद्रशेखर तिवारी था जो अंतिम सांस तक अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ते रहे, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रशेखर आजाद का रिश्ता मध्य प्रदेश के ग्वालियर से भी रहा है।
राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत के बाद पहला बम ग्वालियर में बना
ग्वालियर के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे चंद्रशेखर आजाद (Independence Day 2024 ) के क्रांतिकारी दल के अभिन्न मित्र थे। यहां बम बनाने का काम होता था। एक लेखक ने बताया है कि राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत के बाद पहला बम ग्वालियर में ही बनाया गया था।
अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए मध्य प्रदेश को बनाया केंद्र
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले क्रांतिकारी नेता चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी दल के वह नायक थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की गोली की बजाय खुद की गोली से शहीद होना उचित समझा। वे एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने मध्य प्रदेश को खास तौर से अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने का अपना केंद्र बनाया था। उनका ग्वालियर में भी युद्ध की रणनीति का एक गोपनीय केंद्र था।
ग्वालियर के ये लोग थे चंद्रशेखर आजाद के खास
ग्वालियर में चंद्रशेखर आजाद के कुछ खास लोग थे, जिनमें रामकृष्ण पांडे, मलकापुरकर और पोतदार। ग्वालियर में जनक गंज इलाके के एक पुराने मोहल्ले शेख की बगिया में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे रहते थे। उनका घर आज भी वहां बना हुआ है जिसमें उनके परिवार रहता है। इस घर में बम बनाने का काम होता था और आजाद गोपनीय बैठक करते थे।
मिठाई के डिब्बों में भिजवाए जाते थे बम
बताया जाता है कि इस घर में कई बार चंद्रशेखर आजाद गोपनीय बैठक कर चुके थे। चंद्रशेखर आजाद के खास रामकृष्ण पांडे की हनुमान चौराहे पर एक नाश्ते और मिठाई की दुकान थी, जिसके लिए उनके घर से नाश्ते का सामान समोसा, कचौड़ी और मिठाई बनकर आती थी। समोसा, कचौड़ी और मिठाई के डिब्बों के नीचे टोकरी में बम के गोले भी दुकान पर भिजवाए जाते थे, जहां से यह गोले चंद्रशेखर आजाद तक पहुंच जाते थे। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज जो वर्तमान में एमएलबी कॉलेज के नाम से जाना जाता है, वहां की लेबोरेटरी से चंद्रशेखर आजाद के साथी रामकृष्ण पांडे बम बनाने के लिए कई प्रकार के केमिकल और सामग्री चुरा कर लाते थे।
पूरा परिवार रामकृष्ण पांडे का देता था साथ
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे लगभग 90 साल तक जीवित रहे और 22 दिसंबर 1988 में उनका निधन हो गया। रामकृष्ण पांडे के परिजन गजेंद्र पांडे बताते हैं, "उनके परिवार में बड़े लोग यह जानते थे कि चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे में उनका गोपनीय बैठक करना जरूरी था, जिसमें पूरा परिवार सहयोग भी करता था।"
...तो इसलिए चंद्रशेखर आजाद ने पुलिस चौकी पर फेंक दिया था बम
लोगों का कहना है कि ग्वालियर के जनक गंज इलाके में ही बनी जनकगंज डिस्पेंसरी सन 1930 के दशक में पुलिस चौकी हुआ करती थी। उस दौरान चंद्रशेखर आजाद ग्वालियर आया जाया करते थे। एक बार अंग्रेजों के सिपाहियों को यह पता चल गया था कि चंद्रशेखर आजाद ग्वालियर के जनक गंज इलाके के लक्ष्मी नारायण मंदिर में ठहरे हैं तो अंग्रेजों ने उनकी घेराबंदी की तैयारी कर ली थी। यह बात रामकृष्ण पांडे के जरिए चंद्रशेखर आजाद को पता चली तो चंद्रशेखर आजाद ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे से बम के गोले लेकर पुलिस चौकी पर फेंके थे।
चंद्रशेखर आजाद के लिए जरूरी ठिकाना था ग्वालियर
हालांकि चंद्रशेखर आजाद का ज्यादातर समय झांसी के पास ओरछा टीकमगढ़ और निवाड़ी में बीता, लेकिन ग्वालियर नजदीक होने की वजह से उनके लिए बेहद जरूरी ठिकाना था। मशहूर पत्रकार और लेखक राम विद्रोही की 'नया सवेरा' किताब में चंद्रशेखर आजाद के ग्वालियर कनेक्शन का इतिहास लिखा है। इसमें उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के लक्ष्मी नारायण मंदिर में ठहरने का इतिहास भी लिखा है।
इन इलाकों में अधिक जाते थे चंद्रशेखर आजाद
बताया जाता है कि उन दिनों एक बार पुलिस ने आजाद का पीछा किया तो वह लक्ष्मी नारायण मंदिर के पीछे के रास्ते से निकले और लोगों ने आजाद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए फिर वे फेनी वालों की गली से होते हुए अंग्रेजी हुकूमत को चकमा दे गए। ग्वालियर में नाका चंद्रबदनी, आम खो, जयेंद्र गंज और जनकगंज में चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहा करते थे। इन सभी इलाकों में चंद्रशेखर आजाद अक्सर आया करते थे।
यहां होती थी गोपनीय बैठक
ग्वालियर के जनकगंज का लक्ष्मी नारायण मंदिर (Laxmi Narayan Temple) और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे के घर की दूरी लगभग 300 मीटर थी। ऐसे में उनके यह दोनों ही ठिकाने गोपनीय बैठकों के लिए खास जगह माने जाते थे। लक्ष्मी नारायण मंदिर में लेखक राम विद्रोही की पुस्तक नया सवेरा के कुछ अंश दीवार पर लगाए गए हैं।
आजादी के आंदोलन की याद दिलाती हैं ग्वालियर की गलियां
जनकगंज इलाके के पुराने घर पुरानी गलियां और पुरानी बस्ती आज भी आजादी के आंदोलन की याद दिलाती हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामकृष्ण पांडे (Freedom fighter Ramkrishna Pandey) जिस घर में रहते थे वह भी तंग गलियों के बीच उसी रूप में बना है। आजादी के आंदोलन में यह घर न केवल गोपनीय बैठकों के लिए था, बल्कि यहां बम बनाने का काम होता था। ऐतिहासिक शहर ग्वालियर के स्वतंत्रता सेनानी आजादी के आंदोलन से करीबी रूप में जुड़े थे। इसी वजह से क्रांतिकारी दल के नायक चंद्रशेखर आजाद ग्वालियर से बेहद लगाव रहा।
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