Jabalpur News: निजी स्कूलों को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, स्कूल संचालकों ने कलेक्टर पर लगाए आरोप

Jabalpur news: जबलपुर। जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा विद्यार्थियों से मनमानी फीस वसूली और यूनिफार्म एवं पुस्तक विक्रेताओं से मिलीभगत कर करोड़ों की कमीशनखोरी को अंजाम देने वाले स्कूल संचालकों पर सख्ती एवं कार्रवाई लगातार जारी है। वहीं दूसरी ओर...
jabalpur news  निजी स्कूलों को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत  स्कूल संचालकों ने कलेक्टर पर लगाए आरोप

Jabalpur news: जबलपुर। जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा विद्यार्थियों से मनमानी फीस वसूली और यूनिफार्म एवं पुस्तक विक्रेताओं से मिलीभगत कर करोड़ों की कमीशनखोरी को अंजाम देने वाले स्कूल संचालकों पर सख्ती एवं कार्रवाई लगातार जारी है। वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन की कार्रवाई से बचने के लिये शिक्षा माफिया निजी स्कूल संचालक एक बार फिर हाईकोर्ट में शरण में पहुंचे है, हालांकि निजी स्कूलों को हाईकोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। जबलपुर कलेक्टर की कार्यवाही के विरुद्ध निजी स्कूल संचालकों द्वारा दायर की गई याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज करते हुये जिला प्रशासन की कार्रवाई को सही ठहराया है।

यह था पूरा मामला

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जिले के कुल 11 निजी स्कूलों के ऊपर कार्यवाही की थी। इन स्कूलों में जांच के दौरान फीस, यूनिफार्म और पुस्तक विक्रेताओं के साथ सांठगांठ कर करोड़ों रुपयों की अवैध कमाई किए जाने का खुलासा हुआ। इन 11 निजी स्कूलों में 8 स्कूलों ने कार्यवाही के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई है जिसमें क्राइस्ट चर्च स्कूल की 3 ब्रांच, सैंट अलोयसियस स्कूल की 2 ब्रांच और स्टेम फील्ड इंटरनेशनल स्कूल, ज्ञान गंगा आर्केड इंटरनेशनल स्कूल के साथ-साथ दमोह का सेंट जॉन्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल शामिल है।

इन 8 निजी स्कूल संचालकों की ओर से दायर याचिका में सुनवाई के दौरान एडवोकेट ने तर्क दिया कि जबलपुर कलेक्टर ने मध्यप्रदेश निजी विद्यालय फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन अधिनियम -2017 का उल्लंघन कर अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर स्कूलों पर कार्यवाही की है। जस्टिस भट्ठी की एकलपीठ में सुनवाई के दौरान निजी स्कूलों की ओर से वकील ने दलील दी कि अधिनियम 2017 के अनुसार जिस पोर्टल पर स्कूल संचालकों को फीस और ऑडिट रिपोर्ट अपलोड करना अनिवार्य किया गया था, उस पोर्टल पर फीस और ऑडिट रिपोर्ट अपलोड करने का ऑनलाईन ऑप्शन ही नहीं था। इसके अलावा 2020 से पहले इस पोर्टल का संचालन नहीं था।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर जिला समिति पर भी आरोप लगाया कि उन्हें फीस निर्धारण का कोई अधिकार नहीं है। याचिका दाखिल करने वाले स्कूलों ने यह भी कहा कि निजी स्कूलों को अपना पक्ष रखने या सुनवाई के लिये जिला प्रशासन की ओर से कोई मौका नहीं दिया।

सरकारी वकील ने कोर्ट में रखे साक्ष्य

हाईकोर्ट में जस्टिस भट्ठी की कोर्ट में मध्यप्रदेश शासन की ओर से प्रस्तुत हुए अधिवक्ता ने निजी स्कूलों की याचिका और वकील के तर्कों पर जिरह करते हुए तमाम आरोपों को निराधार बताया। सरकारी वकील ने दलील दी कि माननीय कोर्ट में कोर्ट याचिकाकर्ताओं द्वारा जो याचिका लगाई गई, उन्हीं दस्तावेजों में वह नोटिस भी है जो उन्हें जिला समिति के द्वारा जारी किए गए थे। इसके साथ ही उन नोटिसों के जो जवाब निजी स्कूलों के द्वारा दिए गए, वह भी याचिकाकर्ताओं ने खुद ही फाइल में शामिल किए हैं। लिहाजा यह आरोप पूरी तरह निराधार है कि निजी स्कूल संचालकों को कार्रवाई से पहले नोटिस और सुनवाई के लिये पर्याप्त मौका नहीं दिया गया।

इसके अलावा शासकीय अधिवक्ता ने माननीय कोर्ट में तर्क रखा कि मध्य प्रदेश निजी विद्यालय फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन अधिनियम-2017 में फीस वृद्धि, स्कूली यूनिफार्म और किताबों के लिये स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए थे, जिनका पालन नहीं किया और कमीशनखोरी और ज्यादा फीस वसूली के फेर में खुल्लम-खुल्ला मनमानी की गई है।

कोर्ट ने खारिज की निजी स्कूलों की अपील

सरकारी वकील की दलील को सुनने और कोर्ट में पेश किये साक्ष्यों को बारीकी से समझने और देखने के बाद जस्टिस मनिंदर एस भट्टी ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं पर की गई कार्यवाही के पहले उन्हें शोकॉज नोटिस जारी हुए और उनके जवाब भी स्कूलों द्वारा दिए गए हैं। इससे यह तो स्पष्ट है कि निजी स्कूलों को उनका पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया था। इसके साथ ही पोर्टल पर दस्तावेज अपलोड ना करने से यूनिफॉर्म जैसे मामलों के लिए भी अधिनियम 2017 में स्पष्ट निर्देश हैं, जिसका उल्लंघन निजी स्कूलों के द्वारा किया गया है। इसके बाद भी यदि वह किसी प्रकार की राहत चाहते हैं तो वह जिला कमेटी के समक्ष अपील दायर करने के लिये स्वतंत्र है। जस्टिस भट्ठी ने इस आदेश के साथ ही निजी स्कूलों की ओर से दायर याचिका को हाई कोर्ट सुनवाई के दौरान खारिज कर दिया।

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