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Jamsawali Temple Case: जामसांवली ट्रस्ट को हाईकोर्ट ने भंग कर नियमावली को किया खारिज, जानें पूरा मामला

Jamsawali Temple Case: जबलपुर। मध्य प्रदेश में आज माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर खंडपीठ ने पांढ़ुर्णा जिला के सौंसर तहसील में बने जामसांवली हनुमान मंदिर पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चमत्कारिक जामसांवली हनुमान मंदिर के ट्रस्ट को भंग कर...
09:29 PM Aug 10, 2024 IST | MP First
Jamsawali Temple Case: जबलपुर। मध्य प्रदेश में आज माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर खंडपीठ ने पांढ़ुर्णा जिला के सौंसर तहसील में बने जामसांवली हनुमान मंदिर पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चमत्कारिक जामसांवली हनुमान मंदिर के ट्रस्ट को भंग कर...

Jamsawali Temple Case: जबलपुर। मध्य प्रदेश में आज माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर खंडपीठ ने पांढ़ुर्णा जिला के सौंसर तहसील में बने जामसांवली हनुमान मंदिर पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चमत्कारिक जामसांवली हनुमान मंदिर के ट्रस्ट को भंग कर नियमावली को खारिज कर दिया। माननीय न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि ट्रस्ट सक्षम प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत नहीं था। यह निर्णय ट्रस्ट के उपाध्यक्ष दादारावजी बोबडे द्वारा दायर याचिका पर दिया गया। इस मामले पर ट्रस्ट के कुछ लोगों ने आपत्ति जाहिर की थी कि अध्यक्ष ने अनियमितता के साथ नए लोगों को ट्रस्ट में शामिल किया है। इसी मामले पर कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, 22 नवंबर 2023 को जाम सांवली ट्रस्ट की प्रबंधकारिणी की बैठक हुई, जिसके बाद अध्यक्ष बने धीरज चौधरी ने नियमों को ताक पर रखकर ट्रस्ट में 12 नए लोगों को आजीवन सदस्य बनाने का प्रस्ताव पारित किया। इन आरोपों के चलते ट्रस्ट के 24 में से 17 सदस्यों द्वारा अध्यक्ष धीरज चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। साथ ही नए मेम्बर्स की सदस्यता पर भी आपत्ति जताई। अध्यक्ष ने नए लोगों को शामिल करने के लिए प्रस्ताव पारित किया और उसे अनुमोदन के लिए अनुविभागीय अधिकारी के पास भेजा। जबकि, नियम के मुताबिक, ट्रस्ट के सदस्यों की एक साधारण सभा के माध्यम से बहुमत के आधार पर नए सदस्यों को जोड़ा जाना चाहिए था। इस तरह नियमों के खिलाफ जाकर अध्यक्ष ने प्रशासनिक स्वार्थ का फायदा उठाया।

कलेक्टर ने नहीं दी थी स्वीकृति

इसी के चलते अन्य 17 सदस्यों ने ट्रस्ट के अध्यक्ष धीरज चौधरी के खिलाफ 'अविश्वास प्रस्ताव' पारित किया। जिसे धीरज चौधरी द्वारा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इसमें माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह बताया गया कि सौंसर के अनुविभागीय अधिकारी को पंजीयक लोक न्यास, की शक्तियों की स्वीकृति कलेक्टर द्वारा नहीं की गई। दादाराव बोबडे ने 1990 में ट्रस्ट के पंजीयन एवं नियमावली को स्वीकृति देने के अनुविभागीय अधिकारी, सौंसर के अधिकारों पर प्रश्न उठाया था। इसी न्यायिक दृष्टांत के आधार पर दादाराव बोबडे की इस याचिका को माननीय उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया। इस मामले पर कोर्ट ने ट्रस्ट को भंग कर नियामवली को खारिज कर दिया।

मामले पर आगे इन बातों पर किया काम होगा

कोर्ट के निर्णय के बाद यह काम किए जा सकते हैं। पहले तो नए नियमों के तहत कार्यकारिणी कमेटी का फिर से चुनाव होगा। ट्रस्ट का पंजीकरण होकर तरीके से कार्यकारिणी का गठन होगा। याचिका कर्ता ने कार्यकारिणी के गठन होने तक कोर्ट से कलेक्टर पांढ़ुर्णा को प्रशासक के तौर पर काम करने के निर्देश की मांग की गई थी। कोर्ट के इस आदेश के बाद हनुमान मंदिर ट्रस्ट जाम सांवली से जुड़े सभी केस का अब कोई मतलब नहीं निकलता वे स्वतः ही खत्म हो जाएंगे।

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