MP Politics: कमलनाथ ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “कर्ज के दलदल में एमपी, डूब रहा है युवाओं का भविष्य”
MP Politics: भोपाल। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने राज्य की भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि राज्य कर्ज के दलदल में धंस रहा है जिसके कारण यहां के युवाओं का भविष्य खतरे में हैं। उन्होंने एक लेख लिखते हुए डॉ. मोहन यादव सरकार की आलोचना भी की है।
क्या लिखा है उन्होंने अपने पत्र में
कमलनाथ ने अपने लेख में लिखा कि मध्य प्रदेश (MP Politics) भारत का हृदय प्रदेश है। अपनी समृद्ध प्राकृतिक संपदा और वन्य जीवन ने इसे पूरे देश में विशिष्ट स्थान दिया है। किसानों की मेहनत से मध्य प्रदेश सोया प्रदेश कहलाता है तो अपने घने जंगलों में बड़ी संख्या में विचरण करने वाले बाघों के कारण इसे पूरे देश में बाघ प्रदेश का दर्जा भी मिला हुआ है। मध्य प्रदेश के लोग ईमानदार और मेहनती हैं। इस तरह से देखा जाए तो मध्य प्रदेश के पास देश के सबसे आगे बढ़ते हुए समृद्ध राज्य होने की सारी संभावनाएं मौजूद हैं। लेकिन इतना सकारात्मक वातावरण होने के बावजूद पिछले कुछ वर्ष से यह देखा जा रहा है कि मध्य प्रदेश की सरकार प्रदेश को कर्ज के दलदल में डुबोती जा रही है। अगर आंकड़ों पर निगाह डालें तो अब तक मध्य प्रदेश के ऊपर करीब 4 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है।
सरकार को योजनाओं के लिए 88 हजार करोड़ कर्ज लेना होगा
उन्होंने आगे लिखा कि प्रदेश सरकार ने योजनाओं पर जो खर्च घोषित किया है, उसकी पूर्ति के लिए चालू वित्त वर्ष में ही मध्य प्रदेश सरकार को रिकॉर्ड 88,540 करोड रुपए कर्ज लेना पड़ेगा। पिछले वित्त वर्ष में प्रदेश सरकार ने 55,708 करोड रुपए कर्ज लिया था। इस तरह एक वित्त वर्ष में ही कर्ज में 38% की वृद्धि होने जा रही है। मध्य प्रदेश में पहले भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार और अब डॉक्टर मोहन यादव की सरकार लगातार कर्ज लेती चली जा रही है। पिछले 5 वर्ष में प्रदेश सरकार ने सिर्फ कर्ज के ब्याज के रूप में ही एक लाख करोड रुपए चुकाए हैं। हाल यह हो गया है कि कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी मध्य प्रदेश सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। प्रदेश सरकार के बजट में कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए अलग से मद बनाना पड़ता है।
उन्होंने पूछा कि जनता का क्या भला किया?
कमलनाथ ने आगे कहा कि ऐसे में सवाल यह है कि बेतहाशा कर्ज लेकर आखिर मध्य प्रदेश की भाजपा सरकारों ने पिछले कुछ वर्ष में प्रदेश की जनता का क्या भला किया है? प्रदेश के हालत पर नजर डालें तो पेट्रोल और डीजल के ऊपर सबसे ज्यादा वेट लेने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश शामिल है। इस तरह प्रदेश की जनता डीजल और पेट्रोल की सबसे ज्यादा कीमत चुकाने को मजबूर है। अगर प्रदेश की बिजली दरें देखें तो भी आप पाएंगे कि देश के बाकी राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश का नागरिक प्रति यूनिट कहीं ज्यादा बिजली का बिल चुका रहा है। वाहनों के रजिस्ट्रेशन और मकान की रजिस्ट्री में भी मध्य प्रदेश सरकार देश के संपन्न राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा टैक्स नागरिकों से वसूल कर रही है।
सबसे ज्यादा कर्ज एमपी सरकार अपने नागरिकों से ले रही है
इस तरह से देखा जाए तो एक तरफ तो मध्य प्रदेश के नागरिक कर्ज के बोझ से दब रहे हैं तो दूसरी तरफ वह देश में सबसे ज्यादा टैक्स चुकाने वाले नागरिक हैं। सवाल यह उठता है कि नागरिकों से भरपूर टैक्स वसूल करने के बावजूद प्रदेश सरकार आखिर क्यों अपने संसाधनों से प्रदेश का खर्चा नहीं चला पाती और लगातार कर्ज लेती जा रही है? उदारवादी अर्थव्यवस्था में यह सामान्य धारणा है कि अगर कोई सरकार कर्ज लेती है तो वह जनकल्याण और विकास के कार्यों पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करती है। लेकिन मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार जन कल्याण के कार्यों पर अतिरिक्त खर्च करना तो दूर अपने चुनाव घोषणा पत्र में जो वादे किए थे, उन तक को पूरा नहीं कर रही है।
सरकार ने किसानों से वादा किया वो निभाए सरकार
पाठकों को याद होगा कि विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने गेहूं का समर्थन मूल्य ₹2700 प्रति क्विंटल और धान का समर्थन मूल्य 3100 रुपए प्रति क्विंटल करने का वादा किया था। लाड़ली बहना योजना की राशि बढ़कर ₹3000 प्रति माह करने का वादा भी भारतीय जनता पार्टी ने किया था। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि शिक्षकों को नियमित करने का वादा भी किया था। प्रदेश में हर महीने 2 लाख नए रोजगार सृजित करने का वादा भी भाजपा ने किया था। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2022 में किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे। लेकिन इनमें से एक भी वादे पर भाजपा सरकार ने अमल नहीं किया है। यही नहीं, शिवराज सरकार के दौरान मेधावी छात्रों को लैपटॉप और स्कूटी देने की योजना भी चुनाव से ठीक पहले अमल में लाई गई थी। लेकिन मोहन यादव सरकार में ना तो टॉपर छात्रों को लैपटॉप बांटे जा रहे हैं और ना ही किसी को स्कूटी मिली।
कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों की चर्चा भी की
कांग्रेसी नेता ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह सब करना असंभव है।2019 में मेरे मुख्यमंत्री कार्यकाल में विकलांग पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन और विधवा पेंशन की राशि बढ़ाकर दोगुनी की गई थी। संबल योजना की जगह नया सवेरा योजना लाकर श्रमिक वर्ग को आर्थिक लाभ पहुंचाए गए थे। ₹100 में 100 यूनिट बिजली उपलब्ध कराई गई थी। इसके अलावा पहले चरण में 27 लाख किसानों का कर्ज भी कांग्रेस सरकार ने माफ किया था। 1000 गौशालाओं का निर्माण कराया गया था और महाकाल कॉरिडोर के निर्माण के लिए 355 करोड रुपए आवंटित किए थे। इस तरह के कल्याणकारी कार्यों पर बड़ी मात्रा में बजट आवंटित करने के बावजूद मेरी सरकार के दौरान कर्ज लेने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया गया था।
यह सब उदाहरण इसलिए पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं ताकि यह तस्वीर साफ हो कि अगर सरकार वाकई कल्याणकारी योजनाओं पर कार्य करना चाहती है तो प्रदेश को अनावश्यक कर्ज के दलदल में डाले बिना भी जनकल्याण के काम किये जा सकते हैं। मैंने अपने कार्यकाल में सरकारी आयोजन, प्रदर्शनों, विज्ञापनों और इवेंटबाजी पर फिजूल खर्ची को अत्यंत सीमित कर दिया था। इससे सरकारी खजाने पर बोझ में कमी आई थी।
सरकार पर लगाया भ्रष्टाचार का आरोप
लेकिन इस तरह की कोई सोच वर्तमान सरकार में नजर नहीं आती। बल्कि इस बात का शक होता है कि भाजपा सरकारें जानबूझकर इस तरह की परियोजनाओं को मंजूरी दे रही हैं, जिनमें जनकल्याण कम और भ्रष्टाचार के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं का कल्याण अधिक हो। आप सब जानते हैं कि किस तरह शिवराज सरकार और अब मोहन सरकार में "पैसा दो, काम लो" का मंत्र जपा जा रहा है। इस तरह के मामलों की अगर निष्पक्ष जांच हो तो भ्रष्टाचार और इसके संरक्षकों के नाम जनता के सामने स्पष्ट रूप से आ जाएंगे। लेकिन जांच के बिना भी निर्माण कार्यों में होने वाला भ्रष्टाचार तो समय-समय पर जनता के सामने आता ही रहता है।
कमलनाथ ने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि महाकाल लोक में मूर्तियों का गिरना और अभी पिछले दिनों महाकाल मंदिर के पास एक दीवार ढह जाने से दो लोगों की मृत्यु हो जाना निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का उदाहरण हैं। बारिश के मौसम में प्रदेश की सड़कें जिस तरह से उखड़ गई हैं, वह बताता है कि निर्माण कार्यों में किस तरह का घोटाला हुआ है। नर्सिंग घोटाला, व्यापम घोटाला, पटवारी भर्ती घोटाला, आरक्षक भर्ती घोटाला, सतपुड़ा भवन में बार-बार आग लगना, भाजपा के भ्रष्टाचार के जीते जागते सबूत हैं।
फिजूल खर्ची का सबसे बड़ा उदाहरण भोपाल का BRTS कॉरिडोर
दिग्गज कांग्रेसी नेता ने कहा कि अगर फिजूल खर्ची को समझना है तो भोपाल के बीआरटीएस कॉरिडोर को देखा जा सकता है। पहले तो सैकड़ों करोड़ की लागत से इसका निर्माण कराया गया, इसके कारण कई वर्ष तक जनता को परेशानी भुगतनी पड़ी और बाद में कई 100 करोड़ रुपए खर्च करके इसे तोड़ा गया। अगर विस्तृत अध्ययन किया जाए तो पता चलेगा की कम से कम 1000 करोड रुपए सरकारी रैलियों में खर्च हो रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के आयोजनों में भी बैकडोर से सरकारी पैसा खर्च किया जा रहा है। भाजपा के सदस्यता अभियान में जिस तरह सरकारी मशीनरी का उपयोग किया जा रहा है, वह अपने आप में भ्रष्टाचार को दिखा रहा है।
भाजपा सरकारों की इन नीतियों का परिणाम है कि कर्ज का बोझ तो बढ़ा ही है, हर वर्ष बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचा जा रहा है। सरकारी और सार्वजनिक उपक्रम खस्ताहाल होते जा रहे हैं और सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोग अपने महल खड़े करते जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि जनता के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए राजकोष के धन का इस्तेमाल ईमानदारी, पारदर्शिता और प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। अगर इस तरह से वित्तीय अनुशासन नहीं अपनाया गया तो प्रदेश दिवालियापन की कगार पर पहुंच जाएगा।
कमलनाथ ने दिया ग्रीस और श्रीलंका का उदाहरण
यह सब परिस्थितियों बहुत काल्पनिक नहीं हैं। हम देख चुके हैं कि कुछ वर्ष पूर्व इसी तरह के बेतहाशा कर्ज के कारण ग्रीस दिवालिया हो गया था। हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका कर्ज के दलदल में फंसकर अपने सामरिक महत्व के ठिकाने एक अन्य देश को सौंपने को मजबूर हुआ है और कुछ वर्ष पूर्व वहां पर कर्ज़ का संकट राजनीतिक और सामाजिक संकट में बदल गया था। हाल के दिनों में पड़ोसी देश बांग्लादेश में हुए तख्तापलट और जन विद्रोह के बीज भी वित्तीय अनुशासन की कमी में छुपे हुए हैं। बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो दूसरे के साथ हुए हादसों से सबक ले।
वित्तीय अनुशासन के साथ ही दूसरा काम मध्य प्रदेश की सरकार को यह करना चाहिए कि प्रदेश के संसाधनों को और अधिक विकसित करे। प्रदेश के मानव संसाधन का अधिकतम उपयोग हो सके तथा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का निवेश मध्य प्रदेश में बढ़ाया जाए। यह निवेश उस तरह की बिजनेस समिट से नहीं आ सकता जैसी कि पहले शिवराज जी और अब मोहन यादव जी कर रहे हैं। इन सम्मेलनों का उद्देश्य प्रदेश में निवेश लाने से ज्यादा अखबारों में प्रायोजित खबरें छपवाने का है। शिवराज जी के पूरे कार्यकाल में जितने निवेश का दावा किया गया था, उतना निवेश तो पिछले 10 वर्ष में पूरे देश में नहीं आ सका है। इसलिए हैडलाइन मैनेजमेंट करना एक बात है और प्रदेश में सच्चा निवेश लाना दूसरी बात है।
कानून व्यवस्था पर भी साधा निशाना
निवेश के लिए सबसे बड़ी चीज है- भरोसा। लेकिन जब प्रदेश की कानून व्यवस्था ही सुरक्षित ना हो, प्रदेश में दलित आदिवासी और महिलाओं पर अत्याचार की खबरों से अखबार रंगे हुए हों तो प्रदेश के बाहर का उद्योगपति प्रदेश को लेकर क्या छवि अपने मन में बनाएगा? मोहन सरकार की बुलडोजर नीति ने जनता के मन में और निवेशकों के मन में भी यह बात बैठा दी है कि प्रदेश में कानून का शासन नहीं है।
सीएम मोहन यादव को बताई जरूरी बात
कमलनाथ ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री जी जो स्वयं गृहमंत्री भी हैं, उन्हें इन बातों पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है। महात्मा गांधी कहा करते थे कि 'सरकार वही है जो शांति स्थापित करे' लेकिन यहां तो ऐसा लगता है कि भाजपा के नेताओं में ही प्रदेश में अशांति पैदा करने की होड़ लगी हुई है। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार को सबसे पहले वित्तीय अनुशासन अपनाना होगा फिर अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होगी, उसके बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा, प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति सामान्य करनी होगी, प्रदेश में सच्चा निवेश लाना होगा, तब जाकर मध्य प्रदेश को कर्ज के दलदल से बचाया जा सकेगा। और जब कर्ज का बोझ कम हो जाएगा तब जनता के ऊपर टैक्स का बोझ कम करने की शुरुआत की जा सकेगी।
उन्होंने आगे कहा कि इस तरह से प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी और खाली पड़े सरकारी पदों को भरा जाएगा, अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकेगी, समाज के वंचित वर्गों की पेंशन में वृद्धि की जा सकेगी और एक खुशहाल मध्य प्रदेश का निर्माण किया जा सकेगा। अगर इस चुनौती पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो कर्ज का यह मर्ज मध्य प्रदेश के नौजवानों के भविष्य को अंधकार में डुबा देगा। इसलिए सत्ता के निहित स्वार्थ से ऊपर उठकर प्रदेश के भविष्य पर ध्यान देना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए।
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