Supteshwar Ganesh Mandir: विश्व का एकमात्र मंदिर, जहां कल्कि अवतार में पूजे जाते हैं स्वयंभू सिद्ध गणेश भगवान
Supteshwar Ganesh Mandir: जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक ऐसा भी गणेशजी का मंदिर है, जहां दो, चार या छह फीट की प्रतिमा नहीं है बल्कि पूरा का पूरा पहाड़ ही गणेश प्रतिमा है। जी हां, जबलपुर का यह मंदिर न केवल देश का वरन संभवतया पूरे विश्व का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान गणेश की कल्कि अवतार स्वरूप में पूजा होती है। यहां गणपति मूषक पर नहीं, बल्कि घोड़े में सवार होकर भक्तों की मन्नतें पूरी कर रहे हैं। कहां और कैसी है भगवान गणेश (Supteshwar Ganesh Mandir) के कल्कि अवतार स्वरूप की प्रतिमा, आइए जानते हैं इसके पीछे की रोचक कथा इस खास रिपोर्ट में......।
मदन महल रतन नगर पहाड़ी में है विशालकाय गणेश
जबलपुर शहर के मदन महल की पहाड़ियों से सटी हुई रतन नगर कॉलोनी में भगवान गणेश की देश की सबसे बड़ी स्वयंभू मूर्ति है। जिसकी पूजा कई दशकों से भक्त कर रहे हैं। इस मंदिर को सुप्तेश्वर गणेश मंदिर के रूप में पहचान मिली है और यहां गणपति कल्कि अवतार स्वरूप में पूजे जाते हैं। जमीन तल से 50 फीट की ऊंचाई पर भगवान गणेश की प्रतिमा शिला स्वरूप में विद्यमान है, जिसकी उंचाई 25 फीट और परिधि 100 फीट की है।
महिला को स्वप्न में दिए थे दर्शन, आज है भव्य मंदिर
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर की स्थापना भक्तों ने यूं ही अचानक कहीं से कोई प्रतिमा लाकर स्थापना करके नहीं की है, बल्कि इसके पीछे एक रोचक कहानी जुड़ी हुई है। मंदिर के पुजारी हिमांशु तिवारी और गणेश मंदिर में आने वाले भक्तों की मानें तो यह मंदिर प्रेम नगर में रहने वाली बुजुर्ग सुधा अविनाश राजे के स्वप्न की देन है। बुजुर्ग महाराष्ट्रीयन महिला सुधा ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाली तथा धार्मिक आस्था में जीने वाली हैं। उन्हें एक रात स्वप्न में स्वयं भगवान गणेश ने दर्शन दिये और कहां कि मदन महल क्षेत्र में उनकी विशाल प्रतिमा है।
सुबह नींद से उठते ही सुधा अविनाश राजे परिजनों के साथ मदन महल पहाड़ी एवं रहवासी क्षेत्र में भगवान गणेश के स्वप्न के मुताबिक प्रतिमा की तलाश में निकल पड़ी। जब वह रतन नगर की पहाड़ी पर पहुंची तो स्वप्न में जिस गणेश प्रतिमा के दर्शन हुए थे वही शिला आंखों के सामने नजर आने लगी। 4 सितम्बर 1989 का वह दिन था जब सुधा राजे से विशालकाय चट्टान में भगवान गणेश की पहली झलक देखी और तत्काल गंगा जल एवं नर्मदा जल से शिला का अभिषेक कर सिंदूर और घी चढ़ाकर पूजा किया।
तभी से विधिवत रूप से इसे स्वयंभू भगवान गणेश (Supteshwar Ganesh Mandir) की प्रतिमा मानते हुये प्राण-प्रतिष्ठा और धार्मिक अनुष्ठान के साथ पूजन शुरू हुआ, जो समय के साथ भव्य एवं दिव्य सुप्तेश्वर गणेश मंदिर के रूप में विख्यात हो चुका है। साल दर साल मंदिर में भक्तों की आस्था गहरी होने के साथ साथ भीड़ बढ़ती जा रही है, लिहाजा 2009 में मंदिर का प्रबंधन सुप्तेश्वर विकास समिति का गठन कर किया जाने लगा है। मंदिर के रिसीवर तहसीलदार जबलपुर हैं।
मूसक नहीं घोड़े पर सवार हैं भगवान गणेश
अब तक आपने भगवान गणेश को अपने प्रिय मूषक पर ही सवार देखा और सुना होगा, लेकिन सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में स्थित प्रतिमा में वह मूषक पर नहीं, बल्कि घोड़े पर सवार होकर भक्तों की मनोकानाएं पूरी कर आशीर्वाद दे रहे हैं। यहां भक्त मनोकामनाओं के लिए अर्जी लगाते हैं और यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में कल्कि अवतार स्वरूप में गजानन की पूजा होती है। विशालकाय गणेश प्रतिमा के लिये बड़े वस्त्र तैयार किए जाते हैं, जो इनको चारों ओर लपेटकर पहनाए जाते हैं। एक तरफ सिंदूर से श्रृंगार किया जाता है, जिस हर 3 महीने में बदल देते हैं।
सूंड के दर्शन होते हैं, प्रतिमा तो पाताल में समाई है
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां भक्तों को भगवान गणेश के पूरी मूर्ति के दर्शन नहीं होते हैं, बल्कि स्वयं प्रतिमा में केवल सूंड ही भक्तों को नजर आती है। वह इतने विशाल हैं कि मंदिर परिसर में इसे देखने के लिये भक्तों को सिर काफी उंचाई तक उठाना पड़ता है। कहा जाता है कि भगवान गणेश की प्रतिमा काफी विशाल है और प्रतिमा पाताल तक समाई हुई है। यहां गणेश जी की सिर्फ विशाल सूंड धरती के बाहर है, वो भी जमीन से 50 फीट की उंचाई पर और सूंड की स्वयं की उंचाई 25 फीट है, जबकि शेष शरीर धरती के अंदर है। यह मंदिर करीब डेढ़ एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भक्तों और बच्चों के लिये यहां भव्य और आकर्षक साज सज्जा के साथ ही मनोहारी चित्रकारी भी देखने को मिलती है। बच्चों के लिये झूलों से लेकर बड़ों के लिये पार्क और बैंच सहित कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
41 दिन दीपक जलाने से पूरी होती है हर मुराद, चढ़ाते हैं सिंदूर
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर की स्वयंभू प्रतिमा जितनी विशालकाय है, उतनी ही यहां मन्नतें पूरी होने की भी मान्यता है। मंदिर के पुजारी से लेकर भक्त तक, हर कोई मंदिर की महत्ता और आस्था बयान करता है। कहा जाता है कि भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष उपस्थित होकर 41 दिन तक लगातार किसी मनोकामना के लिये अर्जी लगाई जाएं तो उस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है। यहीं वजह है कि यहां सबसे ज्यादा विवाह योग्य युवक युवतियां या उनके परिजन बेटे बेटियों के विवाह की मन्नतें लेकर पहुंचते हैं और उनकी मन्नतें पूरी होते ही धार्मिक अनुष्ठान, भंडारें होते हैं। मंदिर में भगवान गणेश के सामने मन्नत की अर्जी लगाने के बाद जब मनोकामना पूरी होती है तब गणेशजी को सिंदूर, झंडा एवं वस्त्र अर्पित कर कल्कि अवतार में पूजन किया जाता है।
चार दीवारी में कैद नहीं बल्कि खुले आसमान में है प्रतिमा
आपने आमतौर पर मंदिरों में प्रतिमाओं को चार दीवारी के अंदर कमरे में ही देखा होगा, लेकिन सुप्तेश्वर गणेश मंदिर की यह सबसे खास बात ये है कि यहां की विशालकाय स्वयंभू गणेश प्रतिमा (Supteshwar Ganesh Mandir) के उपर कोई गुंबद या दीवार नहीं है। प्राकृतिक पहाड़ी में जिस स्वरूप में भगवान गणेश की स्वयंभू प्रतिमा देखी गई, अब तक उसी स्वरूप में पूजा जारी है। खुले में ही उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
गणेशोत्सव के 10 दिन होती भक्तों की भारी भीड़
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर समिति के पदाधिकारियों के अनुसार यहां रोजाना ही गणेश भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन गणेशोत्सव के 10 दिन बेहद भक्तिमय माहौल होता है। गणेशोत्सव में प्रत्येक दिन सुबह से लेकर शाम को महाआरती तक धार्मिक अनुष्ठान का क्रम चलता रहता है। जबलपुर के कोने-कोने से हजारों भक्त रोजाना पूजा-अर्चना कर मंदिर परिसर में आशीर्वाद लेते है। साल भर विविध धार्मिक अनुष्ठानों के बीच मंदिर में तीन माह में एक बार सिंदूर चढ़ाने के लिये पूजन अर्चन होता है। इसके अतिरिक्त 11 दिन चलने वाले गणेशोत्सव में विशेष पूजा अर्चना और प्रत्येक माह गणेश चतुर्थी को महाआरती की जाती है। श्रीराम नवमी एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव भी मंदिर में भव्यता के साथ भक्त मनाते हैं।
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में हैं सभी देवी देवता
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में विशालकाय स्वयंभू गणेश प्रतिमा के साथ ही यहां पर अन्य सभी देवी देवताओं की भी पूजा होती है। मंदिर में गणेश जी के प्रिय मूषक भी विद्यमान हैं, जिनके कान में भक्त अपनी मनोकामना बताते हैं और मूषक भगवान गणेश तक उनकी अर्जी पहुंचा देते हैं। मंदिर में मां वैष्णो देवी, दुर्गा जी, राधा-कृष्ण, महादेव और विष्णु भगवान की भी प्रतिमाएं हैं। यहां आने वाले भक्त इनकी पूजा अर्चना करते हैं।
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