Prayagraj Mahakumbh: धर्म संसद में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की पहल, केंद्र सरकार को भेजा जाएगा प्रस्ताव
Prayagraj Mahakumbh: महाकुंभ 2025 के अवसर पर प्रयागराज में आयोजित धर्म संसद में आज सनातन बोर्ड के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराना और सनातन धर्म को वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक बनाना है। भागवत कथा वाचक और आध्यात्मिक गुरु देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज द्वारा आयोजित इस धर्म संसद में देशभर के प्रमुख संत और धर्माचार्यों ने हिस्सा लिया।
प्रमुख संतों और धर्माचार्यों की भागीदारी
इस धर्म संसद में शामिल होने वाले प्रमुख संतों में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज, महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज, दिदी मां ऋतम्भरा जी, और अन्य धर्माचार्य उपस्थित रहे। इस आयोजन को आध्यात्मिक गुरुओं का समर्थन भी प्राप्त हुआ।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से कहा, "सनातन धर्म को केवल संरक्षित करने का नहीं, बल्कि इसे बढ़ावा देने और इसे पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक बनाने का समय आ गया है। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है। यह जिम्मेदारी हिंदुओं के हाथों में होनी चाहिए।"
वहीं, श्री श्री रविशंकर ने धर्म संसद के प्रयासों की सराहना करते हुए इसे सनातन संस्कृति के उत्थान का महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा, "सनातन धर्म मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है, और इस दिशा में यह पहल स्वागत योग्य है।"
केंद्र सरकार से अपील
धर्म संसद में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें सनातन बोर्ड के गठन की मांग की गई। इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजने की योजना बनाई गई है। देवकीनंदन महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की अपील करते हुए कहा, "हम चाहते हैं कि सनातन धर्म और मंदिरों की सुरक्षा के लिए एक बोर्ड का गठन हो, जो हिंदुओं के अधिकारों और आस्थाओं की रक्षा कर सके।" हालांकि, धर्म संसद में पारित इस प्रस्ताव को लेकर कुछ बड़े अखाड़ों ने असहमति जताई है। उनके अनुसार, यह विषय अधिक गहन चर्चा और विचार-विमर्श की मांग करता है।
सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार पर जोर
धर्म संसद में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि सनातन धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण का मार्ग है। इसे संरक्षित करने के साथ-साथ, इसकी शिक्षा और मूल्यों को विश्वभर में प्रसारित करना आवश्यक है। महाकुंभ 2025 के इस महत्वपूर्ण आयोजन ने धर्म और संस्कृति से जुड़े कई विचारों को नए सिरे से मंच दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह प्रस्ताव आगे केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर क्या दिशा लेता है।
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