Uniform Civil Code: उत्तराखंड में आज से ‘समान नागरिक संहिता’ लागू, बदल गए ये नियम
Uniform Civil Code Uttarakhand: उत्तराखंड में आज से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू हो गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड आजाद भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां सभी धर्मों, समुदायों यूनिफर्म सिविल कोड लागू हो गया है। अब राज्य में सभी धर्मों और समुदायों पर उनके धार्मिक कानूनों के बजाय एक समान कानून लागू होंगे। अभी तक विवाह, तलाक और वसीयत जैसे मामलों में हर धर्म के लिए अलग-अलग नियम लागू हो रहे थे। आने वाले समय में देश के कई अन्य राज्यों में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड़ लागू हो सकता है। राज्य में यूसीसी लाए जाने का मुस्लिम समुदाय के लोग विरोध कर रहे थे हालांकि सरकार के आगे उनकी नहीं चली।
ऐसे लागू हुआ उत्तराखंड में यूसीसी
वर्ष 2022 में उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य में जनता से यूसीसी लागू करने का वादा किया था। चुनाव में जीत के बाद राज्य केबिनेट की पहली बैठक 22 मार्च 2022 को हुई जिसमें यूसीसी पर निर्णय लिया गय.ा और सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई में ड्राफ्ट बनाने के लिए पैनल का गठन किया गया। ड्रॉफ्ट मिलते ही उसे उत्तराखंड विधानसभा में प्रस्ताव के रूप में पास कराया गया और मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी स्वीकृति दे दी जिसके बाद इसे उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार ने 27 जनवरी 2025 से राज्य में यूसीसी लागू करने की घोषणा की।
राज्य में बदल गए परिवार से जुड़े कानून
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code Uttarakhand) लागू होने के बाद काफी कुछ बदल गया है विशेष तौर पर विवाह, तलाक और वसीयत के मामलों में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है। अब मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह के साथ-साथ हलाला पर भी रोक लगा दी गई है। अब मुस्लिम समाज के लिए भी दूसरा विवाह करने से पूर्व तलाक देना अनिवार्य होगा। इसी प्रकार किसी भी धर्म की लड़की हो, उसका विवाह 18 वर्ष से पूर्व नहीं किया जा सकेगा जबकि लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष रखी गई है। हालांकि कुछ समुदायों में लड़की को माहवारी शुरू होते ही विवाह योग्य मान लिया जाता था जो अब नहीं होगा।
विवाह और तलाक के लिए भी बदले नियम
यूसीसी (Uniform Civil Code Uttarakhand) के तहत अब विवाह रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य कर दिया गया है। पहले भी मैरिज रजिस्ट्रेशन होता था, लेकिन वह स्वैच्छिक था जिसे अब अनिवार्य रूप से सभी को करना है। इससे विरासत, उत्तराधिकार तथा तलाक जैसे मामलों में सहायता मिलेगी। इसी प्रकार सभी धर्मों के लिए तलाक लेने का प्रोसेस भी एक समान कर दिया गया है। अब पत्नी भी पति से तलाक की मांग कर सकेगी। तलाक के मामले अब धार्मिक समितियों के बजाय पारिवारिक कोर्ट में तय होंगे।
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