Gwalior Morena Gajak: जानिए कैसे बनती है ग्वालियर-मुरैना की फेमस गजक, स्वाद ऐसा की मुंह में पानी आ जाए?

Gwalior Morena Gajak: ठंड के सीजन में तो गजक का स्वाद देखते ही बनता है। बड़े ही स्वाद के साथ खाई जाने वाली गजक को बनाने के लिए काफी मेहनत तो लगती है।
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Gwalior Morena Gajak: ग्वालियर। जब भी बात खाने की आती है तो पूरी दुनिया में भारत जैसा देश कहीं नहीं है। भारत में खाने की कई विविधताएं पाई जाती हैं। वहीं,  बात अगर एमपी के ग्वालियर की हो तो चंबल की गजक काफी मशहूर है। यहां की गजक देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सप्लाई होती है। खासकर ठंड के सीजन में तो गजक का स्वाद देखते ही बनता है।

बड़े ही स्वाद के साथ खाई जाने वाली गजक को बनाने के लिए काफी मेहनत तो लगती ही है, साथ ही कुछ समय भी इसे देना होता है। सर्दी के दिनों में तो गजक के कारखाने में दिन-रात काम चलता है और इसके पीछे की वजह हेल्थ भी बताई जाती है। खास बात तो यह है कि मुरैना और ग्वालियर में इन दोनों क्विंटलों की संख्या में गजक बनाई जाती है। आपको यह जानकर अचरज होगा कि ग्वालियर में गजक बनाने के ऐसे-ऐसे कारखाने हैं, जहां चार पीढ़ियों से केवल गजक ही बनाई जाती है।

तिल और गुड़ की गजक की फैली सुगंध

तिल के ऊपर लकड़ी का हथौड़ा चलाते ऐसी तस्वीर ग्वालियर-मुरैना में इन दिनों आम कही जाती है। ज्यादातर गजक बनाने वाले गली-मोहल्ले में बने कारखाने के पास से आप गुजरेंगे तो आपको इसी तरह की आवाज सुनाई देगी। ग्वालियर की प्रसिद्ध गजक बनाने वाले खंबे वालों का कारखाना काफी फेमस है। सामान्य तौर पर लोग सर्दियों में ही गजक खाते हैं और सिर्फ खाते ही नहीं बल्कि दूसरों के स्वागत सत्कार में भी गजक ले जाते हैं।

Gwalior Morena Gajak

गजक बनाने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि यह किसी एक आदमी का काम नहीं बल्कि पूरा टीमवर्क होता है। इसे मिनटों के भीतर अपना काम पूरा करना होता है, नहीं तो गजक का वह स्वाद नहीं मिलेगा, जो आप चाहते हैं।

कैसे बनती है यह गजक

सबसे पहले सफेद तिल को साफ किया जाता है। उसके बाद एक बड़ी कढ़ाई में इसे भूना जाता है। एक और कढ़ाई में तिल की बुनाई चलती है तो दूसरी ओर एक टीम चासनी बनाने का काम करती है। गजक के बारे में कारीगरों का यह कहना है कि सबसे बड़ी कारीगरी चासनी में ही दिखानी होती है। अगर चासनी कम या ज्यादा पक जाए तो गजक ना तो खस्ता बनेगी और ना ही स्वादिष्ट।

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कई चरणों से गुजरती है प्रोसेस

चासनी बनाने के बाद उसे दीवाल में गड़ी एक खूंटी पर पूरी ताकत से खींचा जाता है। लंबे-लंबे रस्सियों जैसे तार बनाए जाते हैं। जब चासनी पूरी तरह से खींचकर सफेद से गुलाबी हो जाए तो फिर इसमें तिल मिलाने का काम किया जाता है। तीसरी प्रक्रिया में चासनी में मिली हुई तिल को जमीन पर फैलाकर कुटाई की जाती है।

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सेहत के लिहाज से है काफी अच्छी

गजक विक्रेताओं का कहना है कि इन दोनों तिल और गुड़ से बनी गजक सर्दी लगने से बचाती है। यह शरीर में गर्माहट लाती है। बच्चों से लेकर बड़े तक गजक का सेवन करें तो सर्दी से बचा जा सकता है। यानी यह आपकी इम्यूनिटी को डेवलप करती है। ग्वालियर के महाराज बाड़े पर खंभे वाले पिछले कई दशकों से सिर्फ 5 x 10 की दुकान पर अपनी गजक बेचते चले आ रहे हैं।

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कहने को तो दुकान छोटी है लेकिन इसकी मांग विदेशों तक है। खंभे वालों का कहना है कि यह गजक पूरे देश में सबसे चौड़ी पट्टी की बनाई जाती है। फिलहाल, ग्वालियर चंबल अंचल में भले ही बाकी चीजों की दुकानदारी धीमी पड़ गई हो लेकिन गजक का बाजार अभी भी गर्म दिखाई दे रहा है।

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