Success Story: आखिर अंगूठा छाप शख्स ने कैसे तय किया साइकिल से होंडा सिविक तक का सफर, जानिए सफलता के पीछे का राज़
Success Story: कहते हैं न अगर जज्बा और जुनून हो तो जीवन में कुछ भी किया जा सकता है। सफलता उन्हीं के कदम चूमती है जो संघर्ष की भट्टी में तपने का साहस रखते हैं। आज की सक्सेस स्टोरी में हम बात करने जा रहे हैं पुणे के रामभाऊ की, जिन्होंने हुनर के बल पर साइकिल से होंडा सिविक तक का सफर (Success Story) तय किया है।
सफलता का मूलमंत्र
ऐसा नहीं है कि अंगूठा छाप रामभाऊ (Pune Rambhau Success story) को जादू की छड़ी मिल गई और उन्होंने आज नाम, शोहरत और दौलत सबकुछ हासिल कर लिया। बल्कि, उन्होंने कठिन मेहनत कर ये मुकाम हासिल किया है। आखिर, रामभाऊ की सफलता का राज़ क्या है,आइए विस्तार से जानते हैं।
पेशे से माली रामभाऊ इस कला में हैं माहिर
सक्सेस स्टोरी में बात पुणे के रहने वाले अंगूठा छाप रामभाऊ की करेंगे, जिन्होंने कलम और कागज हाथ नहीं लगाया लेकिन हुनरमंद होने के चलते और उनकी चर्चा देश भर में हो रही है। पेशे से माली रामभाऊ पर भले ही शिक्षा की देवी मां सरस्वती की कृपा कम रही, लेकिन, धन की देवी मां लक्ष्मी ने उन्हें झोली भरकर आशीर्वाद दिया। रामभाऊ बंजर भूमि को भी हरा-भरा बनाने की कला में माहिर हैं।
एक फैसले ने बदल दी रामभाऊ की जिंदगी
चमचमाती होंडा से चलने वाले रामभाऊ कभी साइकिल से चलते थे। दरअसल, 45 वर्ष की उम्र में भी रामभाऊ साइकिल से घर-घर जाकर लोगों के बगीचे संभालते थे। बागवानी की देखभाल से जो पैसे मिलते उससे परिवार का गुजर-बसर करते। कहते हैं न कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता, काम बस काम होता है। यही बात रामभाऊ जेहन में भी हमेशा से गांठ बांधकर रखते थे। काम में किसी तरह की कोई कोताही नहीं करते।
एक दिन पुणे के ही रहने वाले वेंगुलेकर की नज़र रामभाऊ पर पड़ी। निनाद ने रामभाऊ से पूछा कि उनके घर में बगीचा के लिए माली की जरूरत है, इस पर रामभाऊ मान गए। जब पैसे की बात आई तो काम के प्रति ईमानदार रामभाऊ ने कहा, "जितने पैसे देंगे उतना स्वीकार कर लेंगे।"
आमदनी में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी
निनाद का घर पुणे के पॉश इलाकों में है, जहां अधिकांश अमीर लोगों की कोठियां हैं। देखते ही देखते रामभाऊ ने महज 15 दिन में निनाद के बगीचे का कायाकल्प कर दिया। बगिया में हरिया देख निनाद भी हैरान रह गए। इसके बाद निनाद ने आस पास के लोगों को रामभाऊ से मिलाया और बताया कि बगीचे की देखरेख में रामभाऊ कितने माहिर हैं।
साइकिल के बाद खरीदी मोटरसाइकिल
देखते ही देखते रामभाऊ का काम (Gardening in Pune) बढ़ता गया। फिर क्या था, काम अधिक बढ़ने के चलते रामभाऊ ने शुरुआत में 4 लड़कों को काम पर रख लिया। आमदनी बढ़ने पर रामभाऊ ने मोटरसाइकिल खरीद ली। और मोटरसाइकिल से ही काम पर जाने लगे।
साइकिल से होंडा सिविक तक का सफर
रामभाऊ के साइकिल से होंडा सिविक तक का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। दरअसल, रामभाऊ अपने काम में व्यस्त रहने लगे। उन्हें अपने सेठ निनाद से मिले कई दिन हो जाता था। हालांकि रामभाऊ लगातार निनाद की बगिया की रखवाली करते रहे। इसी बीच रामभाऊ को एक बड़े कॉन्ट्रैक्टर का काम मिल गया।
शून्य से 100 तक का सफर
आमदनी में काफी बढ़ोतरी होने पर रामभाऊ ने होंडा सिविक खरीद ली। एक दिन जब निनाद में कुछ काम कराने के लिए रामभाऊ को बुलाया तो रामभाऊ चमचमाती होंडा सिविक से औजार लेकर उतरे और अपे सेठ को राम-राम कहा। राम-राम सुनते ही निनाद हैरान रह गए और उन्हें इतनी खुशी हुई कि उन्होंने रामभाऊ की तस्वीर ले ली।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
रामभाऊ से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हुनर पहचानकर सही दिशा में और ईमानदारी से काम करते हैं तो सफलता में भले ही देरी लग जाए लेकिन एक न एक दिन सफलता के साथ-साथ शोहरत मिलना निश्चित है। रामभाऊ की कहानी से यह सीख मिलती है कि अपने कर्म के प्रति आप ईमानदार हैं तो साइकिल से होंडा सिविक तक सफर ताय किया जा सकता है। रामभाऊ आज भले ही होंडा सिविक से सफर करते हैं, लेकिन काम में लापरवाही और कोताही बिल्कुल भी मंजूर नहीं है।
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